जवानी शायरी -
जब तैरा नाम लिया दिल ने, तो दिल से,मेरे जगमागाती हुई कुछ वस्ल की रातें निकलीं,
अपनी पलकों पे सजाये हुए अश्कों के चिराग़,
सर झुकाये हुए कुछ हिज्र की शामें गुज़रीं,
क़ाफ़िले खो गये फिर दर्द के सहराओं में,
दर्द जो तैरी तरह नूर भी है नार भी है,
दुश्मने-जाँ भी है, महबूब भी, दिलदार भी है...
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