एक ज़िन्दगी नहीं,
हर जनम वारं दूँ, अपने हिन्दुस्तान पर..
मेरा जूनून है, मेरा सनम है, मेरा कर्म है, वतन मेरा..
लहू की हर बूँद बूँद से,
लाल कर दूँ, सरहदे -ऐ-हिन्दुस्तांन..
मेरा इश्क है, मेरा फख्र हैं, मेरी जान है, वतन मेरा...!!!
Expert Financial Insights, Trading Tips, and Entertainment
DailyMarketNews.in offers expert insights on financial markets, stock market analysis, option trading strategies, forex updates, commodity trends, loans, credit cards, and entertainment highlights. Enjoy actionable trading tips, investment strategies, loan advice, credit card options, government schemes, curated financial resources, inspirational stories, celebrity updates, plus engaging jokes and shayaris to keep you informed and entertained in finance and fun.
Learn More
1971 में भारत की सेना ने 90,000 पाकिस्तानी सैनिकों को युध्द में पराजित कर आत्मसमर्पण को मजबूर कर दिया था| ये दुनिया के सैन्य इतिहास में आत्मसमर्पण की सबसे बड़ी घटना थी, जिसे अंजाम दिया था दुनिया की सबसे जाँबाज सेनाओं में गिनी जाने वाली भारत की शैन्य शक्ति ने|
जवाब देंहटाएंपाकिस्तान के साथ हुए इस युध्द में पाकिस्तान के सैनिक अधिकारियों का कहना था कि वे लाहौर से दिल्ली पाकिस्तान की सीमा कर देगें| पर उनके इन मंसूबों पर पानी फेरते हुए भारत की सेना ने पाकिस्तान के सपने को चूर-चूर करते हुए तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्ला देश) में तैनात सेना प्रमुख जनरल नियाजी को उनके 90,000 पाकिस्तानी/सिपाहियों सहित आत्मसमर्पण को मजबूर कर दिया और पाकिस्तान के टुकड़े कर बांग्ला देश के नाम से नया देश बनवा दिया|
वर्ष 1971 के भारत-पाक युध्द में भारतीय सेना के कुशल नेतृत्व ने देश को जीत दिलाई और उनकी रणकौशलता की बदौलत बांग्ला देश का गठन हुआ| अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर भारत की पकड़ मजबूत हुई और 1971 के भारत-पाक युध्द के मामले में अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को भी मुँह की खानी पडी| भारत-पाक युध्द में भारतीय सेना के सही समय पर लिये गये फैसले के कारण जंग में हस्तक्षेप करने के अमरीका के मंसूबों पर पानी फिर गया| उस दौरान अमरीकी नौसेना के सातवें बेड़े के पहुचने के पहले बांग्ला देश को स्वतन्त्र राष्ट्र घोषित कर दिया गया| इस तरह अमरीकी सामरिक नीति को भारत ने करारा झटका दिया|
भारतीय सेना ने 1971 के युद्ध के दौरान बेहद धैर्य से काम लिया| साथ ही भारतीय राजनैतिक नेतृत्व ने इस मामले में पहले अंतरराष्टीय जनमत को इस बात के लिये संतुष्ट किया कि भारत के लिये युद्ध क्यों जरूरी हो गया था| पश्चिमी देशों को भारत में उत्पन्न स्थिति से अवगत कराया| यूरोप ही नही, अमेरिका में भी उदारवादी चिंतकों और लोगों का एक वर्ग इससे संतुष्ट हो गया कि तब के पूर्वी पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर हाहाकार मचा था और मानवाधिकार हनन हो रहा था| भारतीय राजनैतिक नेतृत्व की यह कूटनीतिक सफलता रही कि अमरीकी मीडिया के एक बड़े वर्ग ने तत्कालीन अमरीकी राष्ट्रपति निक्सन की नीतियों का विरोध कर बांग्ला देश के बारे में भारत की नीतियों का समर्थन किया| भारत-पाक युद्ध में भारतीय राजनैतिक नेतृत्व ने अमरीकी नौसेना के सातवें बेड़े को हस्तक्षेप का मौक़ा ही नही दिया| इससे पहले एक और घटना हुई जिसमें भारतीय राजनैतिक नेतृत्व के राजनैतिक कौशल के कारण निक्सन की अमरीकी प्रेस में काफी किरकिरी हुई| जब भारतीय राजनैतिक नेतृत्व को यह पता चला कि अमरीकी सरकार अपना सातवाँ बड़ा भेजने की तैयारी में है तो भारतीय राजनैतिक नेतृत्व ने तुरंत यह सूचना अमरीका में तत्कालीन राजदूत एल एन झा को भिजवा दी| अमरीकी विदेश विभाग से जब झा ने इसकी पुष्टि कराने की कोशिश की तो विदेश विभाग का जवाब था कि वह न तो इसकी पुष्टि कर सकता है और न ही इसका खंडन| झा ने इस अस्पष्टता का लाभ उठाया और तुरंत संवाददाता सम्मलेन बुलाया| इसमे उन्होंने कहा कि अमेरिकी विदेश विभाग ने नौसेना का सातवाँ बड़ा भेजने की संभावना से इंकार नही किया है| उनके इस बयान से अमेरिकी प्रेस में भारी बहस छिडी| उधर अमरीकी जनमत का एक बड़ा वर्ग वियतनाम युद्ध को लेकर पहले से ही सरकार की नीतियों का भारी विरोधी था| अब यह सूरत बनने लगी कि अमरीका भारत-पाक युद्ध में हस्तक्षेप कर सकता है| भारतीय राजदूत की इस सूचना से मीडिया में निक्सन सरकार की नीतियों की आलोचना शरू हुई, जिसका लाभ भारत को मिला|
पाकिस्तान इस धोखे में रहा कि अगर भारत से युद्ध हुआ तो चीन भी भारतीय सीमा पर मोर्चा खोल देगा और भारत दो युद्ध एक साथ नही लड़ पायेगा| जबकि चीन ने भारतीय सीमा पर कोई भी नया युद्ध करने के विषय में विचार ही नही किया| यही नही, जब युद्ध के दौरान अमरीका ने भारत को धमकाने के लिये बंगाल की खाड़ी में अपने युद्धक जलपोतों का बेडा भेजा, जो अमेरिका के सातवें बेड़े के रूप में मशहूर था, भारतीय सेना ने उसकी परवाह नही की|
तत्कालीन भारतीय राजनैतिक नेतृत्व की एक चूक से भारत ने एक बार फिर 1971 के भारत-पाक युद्ध में कश्मीर मुद्दे का हमेशा के लिये समाधान करने का अवसर खो दिया जब कि पाकिस्तान न केवल बुरी तरह हारा था अपितु भारत के पास 90,000 पाकिस्तानी युद्ध कैदी थे|
1971 के भारत-पाक युद्ध को याद कर आज हम भारतीय अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं साथ ही अपने देश की जाँबाज सेना पर गर्व करते हैं| !!!