पृथ्वीराज चौहान जयचंद के कारण 18वा युद्ध हार चुके
थे, परन्तु उनके खून में राजपुताना जोश
हिलोरे मार रहा था, युद्ध के बाद उनको बंदी बना लिया गया,
(बटवारे से पहले पंजाब का अंग था) ले गया |
को कहा की, मैंने आपकी धनुर्विद्या के बारे में बहुत सुना है और आप बिना आँखों के भी निशाना लगा सकते है सो आज आपकी ये कला देखना चाहता हु, महराज पृथ्वीराज ने धनुष बाण लिया और कवि चन्द्र ने गाना शुरू किया, इशारों ही इशारों में गीत द्वारा उन्होंने महाराज पृथ्वीराज को मुहम्मद गौरी की दिशा और स्थिती बता दी, महाराज ने निशाना साधा और फिर मोहम्मद गौरी ढेर ।
आज भी अफ्घनिस्तान और पेशावर की सीमा पर महाराज पृथ्वीराज चौहान की समाधी है, उनके साथ ही कवि चन्द्र की भी समाधी है,
पाकिस्तानी सीमा पर बनी हुई इन समाधियो पर न ही कभी कोई मेला लगता है और न ही कभी फूल चड़ाए
जाते है.....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें