धड़कने भड़क रही, जैसे कि भूचाल हो !
माँ भारती पुकारती, कहाँ पे मेरे लाल हो !
यदि मेरा ख्याल हो, न द्वंद न सवाल हो !
रक्त से करो श्रृंगार, आँचल ये मेरा लाल हो !
विजयी तुम्हारा भाल, और शत्रु का कपाल हो !
असुरजनों का अंत हो, हों तो मात्र संत हो !
धर्म हो सुपंथ हो, सृजन हो न कि अंत हो !
उठो उठो बढ़ो बढ़ो, बढ़ो बढ़ो बढे चलो !
लगा लो मृत्यु कंठ से, लौह में ढले चलो !
विजय की भोर हो सदा, ना हार की निशीथ हो !
ह्रदय में एक भाव हो कि, धर्म की ही जीत हो ......
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