सौंदर्य शायरी - जिसे पत्थर समझते थे वही अपना खुदा निकला
हमें इस चिस्त से उम्मीद क्या थी और क्या निकला,
कहा जाना हुआ था तय कहा से रास्ता निकला,
खुदा जिनको समझते थे वो शीशा थे न पत्थर थे,
जिसे पत्थर समझते थे वही अपना खुदा निकला।।।।
कहा जाना हुआ था तय कहा से रास्ता निकला,
खुदा जिनको समझते थे वो शीशा थे न पत्थर थे,
जिसे पत्थर समझते थे वही अपना खुदा निकला।।।।